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फ्रंटलिस्ट इंटरव्यू: डॉ. हरिवंश चतुर्वेदी (डायरेक्टर, बिमटेक) | कॉफ़ी टेबल बुक: "चल मन वृन्दावन"


on Aug 29, 2023

"चल मन वृन्दावन" के प्रकाशक, बिमटेक फॉउंडेशन के डायरेक्टर डॉ हरिवंश चतुर्वेदी और फ्रंटलिस्ट के बीच इस इंटरव्यू में, इस कॉफ़ी टेबल बुक से जुड़ी कई खास बातचीत हुई। इस इंटरव्यू में पुस्तक से संबंधित कुछ एहम सवाल फ्रंटलिस्ट मीडिया की तरफ से डॉ चतुर्वेदी से पूछे गए, जैसे - इसके शीर्षक का कारण, इसका उद्देश्य और ब्रज में आने वाली चुनौतियाँ एवं समस्याएँ आदि। यह इंटरव्यू "चल मन वृन्दावन" पुस्तक की एक छोटी सी झलक है, जो आपको पुस्तक की सामग्री के बारे में संक्षिप्त जानकारी देता है।

फ्रंटलिस्ट : धन्यवाद महोदय, हमें अपना वक़्त देने के लिए। और आज आपकी जो कॉफ़ी टेबल बुक लॉन्च हो रही है उसके लिए थोड़ा सी हमारे साथ बातचीत करने के लिए शुक्रिया। सर ये जो कॉफ़ी टेबल बुक लॉन्च हो रही है आज, उससे जुड़े हुए मैं आपसे 2-3 सवाल पूछना चाहती हूँ। 

डॉ. चतुर्वेदी : पहले मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि इस कॉफ़ी टेबल बुक जिसका नाम है "चल मन वृन्दावन", इसकी प्रमुख संपादक हैं, मथुरा से सांसद मैडम "हेमा मालिनी"। और इसके संपादक हैं, हमारे बहुत करीबी दोस्त "डॉ. अशोक बंसल"। बिमटेक फॉउंडेशन, जो बिमटेक का एक NGO है, हमने इसको प्रकाशित(पब्लिश) किया है, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की वित्तीय सहायता से। इसलिए यह एक अस्वीकरण है कि मैं इसका संपादक(एडिटर) नहीं हूँ, इसके संपादक हेमा मालिनी जी और डॉ. अशोक बंसल हैं, आप उनसे भी ज़रूर बातें करें।

फ्रंटलिस्ट : सर, वृन्दावन और ब्रज का भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में विशेष महत्व है और इस विषय पर हज़ारों किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। क्या कारण और उद्देश्य थे जिनके लिए आपने "चल मन वृन्दावन" कॉफ़ी टेबल बुक को लॉन्च और प्रकाशित किया है?

डॉ. चतुर्वेदी : मैं समझता हूँ, पिछले 500 वर्षों में ब्रज के ऊपर बहुत सारी पुस्तकें हिंदी, संस्कृत, भारतीय भाषाओं में और अंग्रेजी में प्रकाशित हुई हैं। और ब्रज से जुड़ी हुई विभूतियों, भगवान कृष्ण के जीवन पर, उनके संदेश पर हज़ारों किताबें प्रकाशित हुई हैं, छपी हैं, लिखी गई हैं। गीता अपने आप में एक ऐसा ग्रन्थ है जो भगवान कृष्ण के विचारों को हमारे सामने लाता है। गीता पर भी हज़ारों किताबें लोगों ने लिखी हैं, उसकी टिप्पड़ी, उसके ऊपर व्याख्या की गई है। अभी जो समस्या है कि ब्रज में पर्यटन के लिए करोड़ों लोग आ रहे हैं। पिछले साल 6 करोड़ लोग मथुरा, वृन्दावन और ब्रज की यात्रा पर आए थे और यह पूरे देश में एक रिकॉर्ड था, नंबर एक पर वाराणसी था, जहाँ करीब 8 करोड़ लोग आए - देशी और विदेशी पर्यटक, मथुरा में 6 करोड़ पर्यटक आए थे। समस्या यह है कि जो लोग वहाँ आते हैं उनको एक प्रामाणिक जानकारी ब्रज के विभिन्न तीर्थ स्थलों, देवालयों, जलाशयों, वनों और उपवनों के बारे में नहीं मिलती। ज्यादातर लोग समझते हैं कि ब्रज में बांके बिहारी मंदिर है और विश्राम घाट है या यह समझते हैं कि गोवेर्धन की परिक्रमा करने जा रहे हैं, तो गोवेर्धन, यमुना, बांके बिहारी या द्वारकाधीश मंदिर, ये 2-4 नाम लोगों को मालूम होते हैं, काफी लोग श्री कृष्ण जन्मस्थान भी जाते हैं लेकिन ब्रज में पग-पग पर लोक कथाएँ हैं, किंवदंतियां हैं और इतिहास भी हैं, जैसे कि रसखान की समाधि महावन में हैं। रसखान मध्ययुग में अकबर के दरबारी थे और बहुत बड़े ब्रजभाषा के कवि भी थे तो उनका नाम एक योद्धा के रूप में भी जाना जाता है और एक कवि के रूप में भी। उनकी समाधि वहाँ पर पहले उपेक्षित थी। अब उसको सरकार और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ने विकसित किया है, तो आर्कियोलॉजिकल सर्वे ने, आज से करीब 150 साल पहले ब्रिटिश पीरियड में कई मथुरा जैसे शहर का जो एक टोपोग्राफी है, उसमें टीले बहुत हैं और उन टीलों पर बस्तियां हैं। इसका मतलब है कि सैकड़ों सालों से लोग यमुना की बाढ़ से बचने के लिए, प्रलय से बचने के लिए टीलों पर रहते थे, ऊंची जगह पर, जैसे मेरा घर है तो वो टीला है एक बहुत बड़ा उसमें 4-5 हज़ार लोग रहते हैं। तो वैसे ही कंकाली टीला एक जगह थी जिसका उत्खनन कराया एक ब्रिटिश उत्खनन विशेषज्ञ ने, आर्कियोलॉजी के एक्सपर्ट ने और उसमें कई हजार साल पुराने एक बौद्ध स्तूप के अवशेष मिले, मानव कंकाल भी मिले। और ये बताया आर्कियोलॉजी के एक्सपर्ट्स ने कि वहाँ एक बौद्ध विहार था। लोग वहाँ रहते थे, मेडिटेशन करते थे और भगवान कृष्ण की लीला भूमि होने के साथ-साथ मथुरा का धार्मिक इतिहास ये भी है कि यहाँ जैन तीर्थंकर, नेमिनाथ जी, भगवान महावीर और गौतम बुद्ध वहाँ पर ये तीनों लोग आते रहे। वहाँ पर चैतन्य महाप्रभु, श्री वल्लभाचार्य, मीराबाई, बड़े बड़े स्कॉलर, भक्त कवि और तो और सम्राट अकबर के बारे में प्रसिद्ध है कि वो आए थे और वहाँ के प्रसिद्ध संगीत संत हरिदास जी से मिले थे जो तानसेन के गुरु माने जाते थे। तो वृन्दावन एक बहुत बड़ा उद्यान था बहुत ही गौरवशाली उद्यान, आज से 400-500 साल पहले। और दिल्ली से जब बादशाह लोग आगरा जाते थे, क्योंकि पहले आगरा उनकी राजधानी थी, बाद में दिल्ली हो गई तो वो बीच में पड़ता था। वो उपवन उनको आकर्षित करता था कि इतना सुन्दर और इतना भव्य कैसे है। और उनको ये भी मालूम था कि यह हिन्दुओं के भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का एक स्थल है जहाँ पर वो अपनी गोपी भक्तों के साथ, गोपीकाओं के साथ विहार करते थे। तो वहाँ पर बहुत सारे मंदिर बनते रहे, नष्ट होते रहे और मध्यकाल में बहुत से जो लुटेरे और आक्रांता आए उन्होंने बहुत से मंदिरों को नष्ट भी किया। कुछ मंदिर अपने आप नष्ट हो गए क्योंकि एक लाइफ होती है हर बिल्डिंग की। तो चैतन्य महाप्रभु ने 16वीं शताब्दी की शुरुआत में यहाँ आकर 1515 में वह वृंदावन, मथुरा वृंदावन आए थे, अपने दो शिष्यों को लेकर और उन्होंने देखा कि वृंदावन नष्ट हो रहा है, वृंदावन की हालत खराब है। तो उन्होंने उसके लिए प्लान बनाया, बादशाह से मिले, सरकार से समर्थन मांगा। बादशाह अकबर ने, जो उनके प्रधान सेनापति थे जय सिंह उनको कहा कि इनकी मदद करिए। सरकार ने भी मदद की, आम लोगों की मदद की और चैतन्य महाप्रभु के नेतृत्व में वृंदावन का पुनर्निर्माण किया गया और वहाँ बांके बिहारी मंदिर के अलावा 6 मंदिर और हैं। इनको मिलाकर सप्त देवालय कहा जाता है। तो वृंदावन का, ब्रज का और ब्रज में बहुत सारे तीर्थ स्थान है गोकुल है, महावन है, बलदेव है, बरसाना है, गोवर्धन है, बहुत सारे तीर्थ स्थल हैं। ब्रज 84 कोस की यात्रा होती है, सितंबर अक्टूबर में, 40 दिन में लोग टेंटों में रहकर जाकर वल्लभाचार्य जी के लोग को मानने वाले लोग हैं गुजरात और राजस्थान के, वो लोग आते हैं। हजारों टेंट लगते हैं और यात्रा रोज एक जगह कैंपिंग करती है। लोग वहाँ घूमते हैं, मेडिटेशन करते हैं, पूजापाठ करते हैं, फिर टैंट उखाड़कर दूसरी जगह ले जाते हैं। अपने आप में एक यूनिक एक्सपीरियंस है। जैसे कुंभ पर हारवर्ड ने रिसर्च किया, इलाहाबाद के कुंभ पर और वह रिसर्च पब्लिश हुई, किताब मेरे पास में है, हार्वर्ड ने पब्लिश की है। तो उस किताब में उनका उद्देश्य क्या था? करीब 100 युवा लोग आए थे, रिसर्च स्कॉलर और वह महीने भर रहे होंगे, उनका रिसर्च का उद्देश्य था कि हम इससे यह मालूम करें कि डिजास्टर होने पर कोई भूकंप आए, प्रलय आए, बाढ़ आए और पूरा शहर अगर नष्ट हो जाए, तो लोगों को टेंपरेरी रेस्ट पाइंट कैसे देंगे मतलब रहने की जगह, टेंपरेरी 1 करोड़ लोगों को, 50 लाख लोगों को देना है तो कैसे देंगे? तो कुम्भ में, करीब 6-8 करोड़ लोग आते हैं, एक डेढ़ महीने में 10-15 करोड़ आते हैं, लेकिन रोजाना 25, 30, 50 लाख लोग आते हैं, तो उनको रहने के लिए टेंट होते हैं , पक्का मकान तो होता नहीं है । उनके लिए टॉयलेट की सुविधा, नहाने की सुविधा, सारी सुविधाएं दी जाती तो यह हार्वर्ड ने रिसर्च की इस पर तो यह चैतन्य महाप्रभु ने इसको पुनर्जीवित किया।

फ्रंटलिस्ट : मथुरा, वृन्दावन और सम्पूर्ण ब्रज में हर जगह जलाशय, वन और उपवन नष्ट हो रहे हैं। ऐतिहासिक धरोहरों की भी उपेक्षा हो रही है, क्या आप बता सकते हैं कि ब्रज और वृन्दावन के पुराने वैभव को हम कैसे वापस ला सकते हैं?

डॉ. चतुर्वेदी : यह बहुत बड़ा कठिन प्रश्न है, क्योंकि इसमें सरकार, समाज और जो धार्मिक व्यक्ति हैं, तीनों के सहयोग की जरूरत है। वृंदावन में समस्याओं का अंबार है और एक अमेरिकन प्रोफेसर ने किताब लिखी है "भगवान कृष्ण की लीला भूमि, 21वीं सदी में वृंदावन।" उनका नाम है जॉन स्ट्रैटन हॉली। अंग्रेजी में लिखी थी उन्होंने "द प्लेग्राउंड ऑफ लॉर्ड कृष्णा, वृंदावन इन 21th सेंचुरी" और इसे मैंने पढ़ा है। इस पुस्तक में उन्होंने मुद्दा उठाया है, वो यहाँ आते रहे हैं, 50 वर्षों से आ रहे हैं वृन्दावन में, और ये सच भी है। उन्होंने फील्ड वर्क किया है तो वह कहते हैं कि यहाँ पर प्लास्टिक के अंबार हैं हर जगह, भूमि अतिक्रमण है, पुरानी बिल्डिंग में लोगों ने कब्जा कर रखा है। पुराने मंदिर, उनमें कोई जाता नहीं है, जो वाकई पुराने हैं, प्राचीन हैं 400-500 साल पहले से, वहाँ कोई जाता नहीं है और जो मंदिर 150-200 साल पुराना है, हर आदमी वहाँ जाना चाहता है। तो यह एक भ्रांत धारणा है कि किसी खास मंदिर में जाने से वृंदावन का अनुभव होगा और बाकी जगह पर नहीं होगा। लेकिन निश्चित रूप से, मंदिर अगर भव्य नहीं है, लाइटिंग नहीं है, सफाई नहीं है तो लोग नहीं जाते। उन्होंने बताया, बंदरों का आतंक है। उन्होंने बताया, कंक्रीट का जंगल बन रहा है। उन्होंने अपनी असहमति व्यक्त की है, इस्कॉन के लोग वहाँ चंद्रोदय मंदिर बना रहे हैं। उसके चारों तरफ कॉलोनी बना रहे हैं। उनका कहना है कि वृंदावन में अगर कंक्रीट के स्काई स्क्रैपर बनेंगे, बड़े-बड़े मॉल्स बनेंगे तो वृंदावन का जो पुराना एक ग्लोरी है, वैभव है, एक ऐसी शांत जगह जहाँ भगवान कृष्ण और राधा और उनकी गोपियां भ्रमण करते थे, तो वो फीलिंग कहाँ से आएगी। आप किसी शहर को, जो प्राचीन है, 1000, 2000, 3000 साल पहले बना होगा कभी, कई बार बना होगा, बिगड़ा होगा, अब उस की जो फीलिंग वृंदावन की कल्पना लोग क्या करते हैं? अरे वो जगह है जहाँ राधा और कृष्ण मिले थे या रास होता था जहाँ पर। अब उस जगह पर आप को मंदिर दिखाई देगा, रासलीला भी करते हुए लोग दिखाई देंगे, लेकिन उसके साथ 100 ऐसी चीज दिखाई देंगे कि आप को मन में वितृष्णा होगी, आपको दर्द होगा, आपको संत्रास होगा, अरे यहाँ इतनी गंदगी, भगवान की ऐसी जगह पर गंदगी, धक्कामुक्की और बिल्डिंग। अभी दो तीन हफ्ते पहले एक बिल्डिंग धराशायी हो गई, पुरानी बिल्डिंग का छज्जा गिर गया, पांच आदमी मर गए तो यह काम आसान नहीं है, क्योंकि वहाँ के लोगों में किसी भी बदलाव के प्रति विरोध की भावना अभी भी है कुछ लोगों में कि अगर आप गली या सड़क को चौड़ा करना चाहते हैं तो जिन के मकान हटाए जाएंगे तो वह कहते हैं कि वह यह नहीं कर सकते, वो कोर्ट चले जाते हैं तो यह चुनौती सरकार के सामने तो है ही। सरकार को समाधान भी ढूंढना है क्योंकि यह कोई एक व्यक्ति तो नहीं कर सकता।

फ्रंटलिस्ट : इस पुस्तक को बनाने में किस प्रकार की मेहनत और रिसर्च लगी होगी, वो तो हम समझ ही सकते हैं। क्या आप हमें उस टीम के बारे में बता सकते हैं जिसने इस पुस्तक को संभव बनाने में योगदान दिया?

डॉ. चतुर्वेदी :  मैं नाम लेना चाहूँगा कि इस किताब का जो प्रमुख कार्य है वह लेखक के रूप में, हेमा जी का बहुत बड़ा नाम है, उनका यश है, उनकी महिमा है, उनका नेटवर्क है, सांसद है वो और भक्त भी है और उनकी श्रद्धा भी है, वृंदावन के लिए, ब्रज के लिए, भगवान कृष्ण के लिए, तो संकल्प उन्होंने लिया। हमने उनसे कहा कि आप संकल्प लें तो सब हो जाएगा। कॉफ़ी टेबल बुक थोड़ा महंगा सौदा है। इसमें कॉस्ट बहुत आती है। जो पाठ पेपर पर छापना है, कंटेंट डेवेलोप करना है। फोटो अच्छी हाई क्वालिटी की होनी चाहिए, तो प्रमुख रूप से “डॉक्टर अशोक बंसल” डेढ़ साल से इसमें लगे हुए थे। उनके साथ एक टीम थी, जिसमें एक लेखक है ब्रज के और एक मंदिर के महंत भी हैं। उनका नाम “श्री सुधीर आचार्य” और उनके साथ जो फोटोग्राफर थे वह “श्री जोगिन्दर” जो कि बिमटेक के एम्प्लोयी हैं और कुछ स्थानीय फोटोग्राफरों ने भी उसमें योगदान दिया। और हेमा जी हर इशू पर उसकी जो आउटलाइन बनाई गई थी, वो सब उनके साथ डिस्कस हुई। कई विषय उन्होंने जोड़े, कई विषयों को हटाया गया। हर फोटो को उन्होंने देखा, कुछ अपनी फोटोग्राफी भी, उनके फोटो भी मिलेंगे, कुसुम सरोवर पर, जो किताब के पिछले कवर पर फोटो है, बहुत भव्य फोटो है, कुसुम सरोवर बहुत सुंदर एक जलाशय है तो हेमा जी ने फोटो शूट किया था और वह कवर पेज पर है, तो इसमें एक टीमवर्क था, एक टीम एफर्ट था। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने इसके लिए फंडिंग दी और बिमटेक फाउंडेशन से डॉ. सी. तिवारी ने सारा कोऑर्डिनेशन किया। तो कुल मिलाकर यह एक सामूहिक प्रयास था और प्रयास इसलिए था कि प्रामाणिक जानकारी देना विदेशियों को, क्योंकि हिंदी अंग्रेजी दोनों में प्रकाशित की गई है। जो विदेशी आते हैं या भारतीय लोग जो विदेशों में रहते हैं, वह अंग्रेजी ही समझते हैं और जो हिंदी जानते हैं उनके लिए भी किताब है, दोनों तरह के एडिशन है और उनको एक प्रामाणिक जानकारी देना कि करीब 50 उसमें लेख हैं और मैं सोचता हूँ कई सैकड़ों उसमें फोटो हैं, मंदिरों के, जलाशयों के, प्राचीन जो वृक्ष हैं जिनका संबंध है भगवान कृष्ण की लीलाओं के साथ, जैसे वंशीवट एक स्थान है, खास तरह के पेड़ हैं, खास तरह के मंदिर में भोग और प्रसाद बनते हैं और संगीत है मथुरा का हवेली संगीत है। तो कुल मिलाकर यह सांस्कृतिक, धार्मिक सारी सूचनाओं की एक प्रामाणिक और रोचक जानकारी है। मतलब इसमें किताबें बहुत छपती हैं, रिसर्च बेस्ड होती हैं, टेक्निकल होती हैं, तो इसमें इसको आम आदमी के लिए बनाया गया है। प्रामाणिक जानकारी के साथ, प्रमाणिक फोटो के साथ, फोटो अगर आप देखें तो आपको लगेगा कि जैसे हम खुद देख रहे हैं। मान लीजिए कोई आदमी यूएस में बैठा हुआ है और वो वृन्दावन नहीं आ सकता, कोई 95 साल का कोई इंडियन है या कोई विदेशी है तो उसको अगर ब्रज के जगहों के बारे में दिलचस्पी है तो किताब उसको एक विंडो देगी कि आप ब्रज को देख सकते हैं कॉफ़ी टेबल बुक “चल मन वृन्दावन के द्वारा।"  

फ्रंटलिस्ट : "चल मन वृन्दावन" पुस्तक के इस नाम के महत्व के बारे में विस्तार से बता सकते हैं कि आपने यह नाम ही क्यों सोचा?

डॉ. चतुर्वेदी : देखिए नाम तो हेमा जी ने दिया है और एक पद है जो ब्रजभाषा में है, पुराना है मेरे ख्याल से किसी विशिष्ट कवि का होगा "चलो मन वृंदावन धाम" "राजन साजन मिश्रा" ने गाया है, यूट्यूब पर आप सुन सकते हैं। लेट अस गो टू वृन्दावन, द अबोड फॉर पीस, लव एंड स्पिरिचुअल साल्वेशन। चलो मन वृंदावन का मतलब है - भौतिकवादी दुनिया को छोड़ो, भगवान कृष्ण और उनकी साथी राधा के निवास स्थान पर जाओ।  क्योंकि ब्रजभाषा को हर एक आदमी समझ नहीं सकता, हिंदी में कर दिया उन्होंने चल मन वृन्दावन।  "चलो" ब्रजभाषा का शब्द है।

फ्रंटलिस्ट : एक शिक्षाविद् के रूप में, आप इस पुस्तक को बड़े पैमाने पर एजुकेशनल और कल्चरल लैंडस्केप में कैसे योगदान करते हुए देखते हैं?

डॉ चतुर्वेदी : देखिए धर्म का असली मीनिंग क्या है और धर्म लोगों को राहत देता है, शांति देता है और मेंटल पीस मिलती है, लोग जाते हैं मंदिर में, मस्ज़िद में, चर्च में। लेकिन अभी क्या लग रहा है कि मंदिरों में और तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए बहुत प्लानिंग करनी पड़ेगी। आपके पास में साधन नहीं है तो आपको बहुत कष्ट होगा। आप भटकते फिरेंगे, जगह नहीं मिलेगी। अभी क्या “वीकेंड तीर्थ” जैसा कंसेप्ट आया है। छुट्टियाँ होती है सैटरडे, संडे को तो लोग कहते हैं चलो हिल स्टेशन चलते हैं और फिर हिल स्टेशन पर इतना ट्रैफिक हो गया है, कुल्लू-मनाली, नैनीताल, सीजन में आप जाइएगा तो आपको सड़क पर जगह नहीं है, होटल जगह नहीं, रेस्टुरेंट में जगह नहीं। तो वैसे लोग कहते चलो वृन्दावन चलते हैं, चलो काशी चलते हैं। तो यह एक वीकेंड ट्रिप वाला जो कांसेप्ट है कि आपके पास पेशेंस नहीं, आपके पास समय नहीं, आपके पास में फीलिंग नहीं, कि उसको फील कैसे किया जाए। फील करने के लिए आपको दो चार दिन घूमना पड़ेगा और आपको लोगों से बात करनी पड़ेगी। धार्मिक लोगों के साथ-साथ पुजारी और बाबा लोग और पौराणिक लोगों से बात करनी पड़ेगी। आम आदमी जो भक्त वहाँ पर घूमते रहते हैं, वहाँ जो वृंदावन की फीलिंग के साथ जीते हैं, ऐसे हज़ार लोग मिल जाएंगे। वहाँ बहुत सारी बंगाली महिलाएं वास करती हैं, जिनको पुरानी प्रथा चली आ रही है, विधवा हो जाती थी तो वो तो गलत है, विधवा को ही आप, घरवाली को छोड़ते हैं, उनकी प्रॉपर्टी हड़पने के लिए छोड़ते हैं। लेकिन फिर भी कुछ लोग अपनी मर्जी से भी आते हैं और वहाँ वृन्दावन वास करते हैं। जैसे कुछ लोग हरिद्वार जाते हैं, वहाँ रहते हैं या फिर बनारस, काशी जाकर रहते हैं या प्रयागराज जाकर रहते हैं। वैसे भी काफी लोग वहाँ रहते हैं और वो जो सच्चे भक्त हैं वो आपको हाथ में एक माला का एक एनवलप टाइप होता है, बैठके हाथ से माला जपते रहते हैं। सुबह-शाम आपको मंदिरो में जाते-आते हुए दिखाई दे जाएंगे और उनको दुनिया से मलतब नहीं कौन क्या कर रहा है, वो अपनी धुन में मस्त। तो वृंदावन में, गोवर्धन, गोकुल में, आपको ऐसे हजारों लोग मिल जाएंगे जो वही रहते हैं। आए कहीं से हैं, लेकिन साधन हैं तो वहाँ रहते हैं। तो धर्म का एक सच्चा स्वरूप क्या होना चाहिए, ये मुद्दा भी हमने इस किताब में उठाया है कि व्यावसायीकरण धर्म का नहीं होना चाहिए। कंक्रीट जंगल नहीं बनने चाहिए, राजनीतिक दुरुपयोग धर्मों का नहीं होना चाहिए। और एक प्राचीन काल से हिंदुस्तान में तरह-तरह की नस्लों के लोग, तरह-तरह की भाषाएं बोलने वाले लोग और विदेशों से आए लोग, अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग, यहाँ आराम से, पीसफ़ुली रहते हैं और वो एक दुसरे के धर्मों का आदर भी करते हैं। जैसे पारसी लोग आए या, बुद्धिज़्म तो भारत से ही पैदा हुआ लेकिन कई मुस्लिम, क्रिश्चियन भारत के बाहर से आए थे तो हुआ यूँ कि इंडिया का कल्चर जो समावेशी कल्चर है, वो सबको जगह देते हैं, सबके साथ एडजस्ट करते हैं। तो ऐसे ही वृन्दवन, जो अभी हो रहा है, धर्म का जो सही स्वरुप है, उसकी जो आत्मा है उसकी तरफ देखकर बाहरी स्वरुप पर जा रहे हैं, जैसे चलो इस्कॉन मंदिर चलते हैं इस्कॉन मंदिर बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे कि कोई बहुत सुंदर मॉल है और वहाँ हर चीज़ चमक रही है, मूर्तियाँ हैं। बिल्कुल, ऐसा लगता है कि सब कुछ अंग्रेज हैं यहाँ पर। मंदिर में भगवान भी लगेगा जैसे कि, कृष्ण भगवन तो खैर सांवले होते हैं। उनको गोरा कैसे बनाओगे। उनको तो आपको सांवला ही बनाना पड़ेगा। तो इस्कॉन का स्वरूप पहले क्या था? अच्छा ही रहा होगा। तो हम लोग धर्म को मानते हैं कि धर्म में तड़क-भड़क नहीं हो सकती। लेकिन मुश्किल क्या है आज कि ज़माने में हर आदमी मंदिर में भी भगवन को भी, कृण्ष भगवान के साथ चक्कर क्या है कि उनकी ड्रेस रोज बदली जाती है, रंग बिरंगी, तो उनको सजने सवरने का शौक हैं। कन्हैया जी को सजाते सवारते हैं, लोग उसको देखने जाते हैं - तड़कता-भड़कता। लेकिन कृष्ण ने जीवन में क्या किया भगवान कृष्ण ने, एक मीडिएटर के रूप में, एक दोस्त के रूप में, एक भाई के रूप में और एक लाइफ की फिसलॉसॉफी देने वाले के रूप में। तो उसको लोग नहीं जानते। आम आदमी जो कम पढ़ा लिखा है वो नहीं जानें, लेकिन पढ़े लिखे लोगों को तो जानना ही चाहिए। 

फ्रंटलिस्ट : आप उन लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे जो इस कॉफ़ी टेबल बुक के पन्नों के माध्यम से वृन्दावन शहर का अनुभव करेंगे?

डॉ. चतुर्वेदी : संदेश यही है कि निर्माण का जो रास्ता है, उसका लक्ष्य भी सही होना चाहिए और उसका पाने का साधन भी सही होना चाहिए। आप जैसे किसी पुलिस वाले को ₹2,000 देकर दर्शन कर रहे हैं और जिसके पास पैसे नहीं हैं उनको दर्शन करने से रोक रहे हैं, तो गलत हुआ न, दर्शन करने के लिए भी रिश्वत दे रहें हैं आप। अरे भई! कम से कम मंदिरों में तो ये काम मत करो। अच्छा दूसरा एक और, मंदिरों में भी ये जो पाँच हज़ार, दस हजार रुपए की टिकट ले ले और पुजारी जी को दे दे तो VIP दर्शन होता है। सारी समस्या ये है कि लोग एक ही दिन दर्शन करते हैं, जैसे कोई खास त्यौहार है, उसी दिन दर्शन करते हैं, लाखों लोग जाना चाहते हैं और जगह नहीं है। तो इसका तरीका यह होना चाहिए, कि बुकिंग होनी चाहिए। जैसे हम दुनिया में घूमते हैं और होटल की बुकिंग होती हैं। किसी शहर में कभी भी कोई प्रॉब्लम नहीं होती क्योंकि सारे होटल ऑनलाइन बुकिंग करते हैं।    

मंदिरों में दर्शन करने वाला जो भीड़ में आए, उसकी टिकट ज्यादा होनी चाहिए और जो सुबह जल्दी उठकर आए, उसकी टिकट सस्ती होनी चाहिए। 4 बजे कोई दर्शन करना चाहता है, हालांकि वहाँ टाइमिंग है, जो कृष्ण भगवान हैं उनको सोने का भी टाइम चाहिए, तो वो टाइम मेरे ख्याल से सुबह से लेकर रात 9-10 बजे तक बजे तक मंदिर खुलते हैं। हालांकि द्वारकाधीश मंदिर 7 बजे मथुरा में बंद हो जाता है, अलग-अलग हैं मंदिर के टाइमटेबल अलग-अलग हैं। तो यही है कि वहाँ जाएं लोग और आस्था के साथ जाएं और उनकी आस्था के साथ वहाँ लोग खिलवाड़ न करें, जो टूरिस्ट ऑपरेटर हैं या जो पंडित-पुजारी हैं, उनमें सभी लोग खिलवाड़ नहीं करते। लेकिन कुछ लोग गलत भी करते हैं, उनको गलत सूचना देते हैं जैसे कि गलत मंदिर पर ले जाने के लिए सही मंदिर से कहते हैं वो ठीक नहीं है और वहाँ तो बंद हो चुका है, और यही मंदिर है, जन्म यही हुआ था। आप गोकुल में जाइए तो वो कहेंगे कि यही हुआ था जन्म। तो वो तो गलत है ना, अप्रमाणिक जानकारी देना और लोगों को झूठी कहानियाँ सुनाना तो वह उनके लिए भी गलत है जो वहाँ लोग करते हैं और जो गुमराह होते हैं वो भी गलत हैं। आप जाइए, सभी स्थानों पर जाइए, सुनिए, पढ़िए और फीलिंग करिए। जो भक्त लोग वहाँ आम लोग जो हैं, देश के कोने कोने से, विदेशों से आए हुए लोग, ब्रज में शांत जगहों पर, पहाड़ियों पर, बरसाने की पहाड़ी पर, गोवर्धन की पहाड़ी पर आपको लोग मिल जाएंगे, जो चुपचाप अपना ध्यान लगाकर बैठे हुए हैं तो वो सब सच्चे भक्त हैं। इस किताब का मैसेज तो यही है।

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